सूचना विभागः तिनका तो दिखा...पर दाड़ी किसकी ?
उत्तराखंड में खुली
विज्ञापन माफियाओं की लाॅटरी,
ताक पर कायदे
(राजीव रावत)
अगर आप उत्तराखंडी
हैं और प्रोडक्शन
हाउस या विज्ञापन
एजेंसी के रूप
में उत्तराखंड में
काम करना चाहते
हैं, तो अपना
इरादा बदल दीजिये,
क्योंकि इस मद
से उत्तराख्ंाड सूचना
विभाग द्वारा खर्च
किये जाने वाली
करोड़ो रूपये की
धनराशि से एक
फूटी कौड़ी भी
आपको मिलने से
रही। पात्रता के
जो नए प्रावधान
सूचना और लोकसंपर्क
विभाग ने तय
किये हैं। उसमें
पहले से ही
जमे जमाये माफियाओं
के लिए सारे
कायदे ताक पर
रखे गये हैं
और जो नए
कायदे निर्धारित किये
गये हैं उसमें
आप फिट बैठते
ही नहीं है।
तो क्या ये
देश भर के
विज्ञापन माफियाओें को उत्तराखंड
बुलाकर खजाना निपटाने की
कोई नई साजिश
तो नहीं पनप
रही।
उत्तराखंड सूचना और लोकसंपर्क
विभाग ने तीन
सितंबर को पत्रांक
संख्या 723 के मार्फत
विज्ञापन सामाग्री के डिजाइन
आदि के लिए
विज्ञापन एजेंसियों से प्रस्ताव
मांगे हैं। विज्ञापन
एजेंसियों के लिए
जो अनिवार्य शर्त
रखी गई है।
उसमें फर्म का
टर्न ओवर एक
करोड़ रूपये प्रतिवर्ष
होना आवश्यक हैं।
जिसमें पिछले तीन सालों
का प्रमाण पत्र
भी देना होगा।
इसके साथ ही
राज्य/ केंद्र सरकार समेत
कार्पोरेट सेक्टर और संस्थागत
संगठनों के विज्ञापन
तैयार करने का
पांच साल का
अनुभव भी मांगा
गया है। इसके
लिए बीते तीन
साल के इनकम
टैक्स रिटर्न के
प्रमाण पत्र भी
आवेदन के साथ
देने होंगे। इसके
साथ ही तकरीबन
15 बिंदुओं में कई
और नियम शर्तें
भी रखी गई
है। लेकिन सबसे
आश्चर्यजनक पहलु यह
है कि पूर्व
से सूचना विभाग
में सूचीबद्ध विज्ञापन
एजेंसियों को नए
सिरे से आवेदन
नहीं करना होगा।
मतलब यह है
कि जिन विज्ञापन
एजेंसियों के साथ
पिछले कई सालों
से मिलकर सारा
खेल खेला जा
रहा है वो
अगर नई शर्तों
को पूरा नहीं
भी करते हैं
तो भी वो
यथावत बनी रहेंगी
और जो बाकी
उत्तराखंड के छोटे
या नए प्रोडक्शन
हाउस है उसके
लिए काम मिलने
का कोई भी
गुंजाइश बाकी नहीं
रही है। अगर
नियमों की गूढ़ता
को समझे तो
केंद्र व अन्य
राज्यों की सरकार
आपसे अनुभव मांगेगी
और उत्तराखंड की
सरकर आपसे केंद्रीय
अनुभव मांग रहा
है। इन नियमों
के आधार पर
कोई भी विज्ञापन
एजेंसी जिसने पिछले तीन
सालों में एक-एक करोड़
का काम नहीं
किया है वो
ना इस साल
सूचना विभाग से
काम ले पायेगा
और ना भविष्य
में कभी भी
काम कर पायेगा
क्योंकि पात्र बनने में
उसे जो अनुभव
प्रमाण पत्र देना
होगा, उसे हासिल
करने के लिए
वो प्रवेश कैसे
करेगा।
कुल मिलाकर जो नए
नियम सूचना विभाग
ने तैयार किये
हैं उसमें भारत
में एक करोड़
से कम के
टर्न ओवर की
तमाम विज्ञापन एजेंसियों
के लिए मार्ग
बंद कर दिये
गये हैं और
भविष्य में बनने
वाली किसी भी
विज्ञापन एजेंसी पर पूर्ण
प्रतिबंध लगा दिया
गया है। इसलिए
अगर आप विज्ञापन
जगत के पुराने
माफिया नहीं हैं
तो इस क्षेत्र
में अपना कॅरियर
बनाने का इरादा
छोड़ दीजिये क्योंकि
लोकतंत्र में शायद
ये पहली बार
हो रहा है
जब भविष्य की
तमाम पीढ़ियों के
लिए अघोषित प्रतिबंध
उत्तराखंड का सूचना
विभाग लगा चुका
है। जबकि जिन
विज्ञापन माफियाओं के साथ
वो पहले से
खेल खेल रहा
है उन पर
यही नए नियम
लागू नहीं होते
हैं।
सवाल है कि
इस नए कायदे
से उत्तराखंड के
व्यवसायियों को क्या
लाभ हुआ। उत्तर
प्रदेश रहते हुए
किसी भी प्रोडक्शन
हाउस या नए
विज्ञापन एजेंसियों के लिए
पूरे दरवाजे खुले
थे। लेकिन जिन
आंदोलनकारियों ने इस
राज्य को बनाया,
उन्हीं के लिए
भविष्य के लिए
सारे रास्ते बंद
कर दिये गये
हैं। देश भर
के विज्ञापन माफिया
अब उत्तराख्ंाड सूचना
विभाग के साथ
मिलकर करोड़ों की
लूट के इस
खेल को खेलेंगे,
पुराने खिलाड़ी भी इस
खेल में शामिल
रहेंगे और कलम
के सिपाहियों को
मजबूर किया जायेगा
कि वो विज्ञापन
माफियाओं की चैखट
पर जाकर अपनी
पत्र-पत्रिकाओं और
चैनल के लिए
भीख मांगे।
ऊंची गुणवत्ता के लिए
मापदंड तय करना
तो ठीक बात
है लेकिन इन
मापदंडों से सूचना
विभाग से सूचीबद्ध
पुराने विज्ञापन माफियाओं को
छूट देने का
अधिकार स्वयं सूचना महानिदेशक
को किसने दिया,
जबकि नए नियम
भी उन्हीं के
हस्तक्षरों से जारी
हुआ है। विभाग
क्या लोकतंत्र से
ऊपर है, जो
ऐसे कायदे बना
दे जिसके आधार
पर वर्तमान और
भविष्य की पीढ़ी
कभी पत्र ही
ना बन सके।
बहरहाल उत्तराख्ंाड की लगाम
एक जज के
पास है। और
उन्हीं के मातहतों
ने ऐसे कायदे
बनायें है जो
विधि सम्मत नहीं
है। अब देखना
होगा कि पूर्व
जज और वर्तमान
मुख्यमंत्री क्या फैसला
करते हैं। तिनका
तो दिख गया
है पर दाड़ी
किसकी है इससे
यह भी पता
चल जायेगा।
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