लोकायुक्तः नए बिल में कई छेद

संघ सूची के बिषय शामिल,जा सकता है केन्द्र

भाजपा और कांग्रेस में लोकायक्त के पुराने बिल और नए बिल को लेकर रार चल रही है.। एक तरफ खण्डूरी शासनकाल मे पारित हुआ लोकपाल बिल राज्य का सत्ताइसवा अधिनियम बना तो उसके बाद लोकायुक्त बिल 2014 सदन के पटल पर आ गया व्यवस्था के अनुसार राज्य के वर्तमान लोकायुक्त खण्डूरी के बिल के अनुसार शक्तिया प्रदान हो जाती है हालाकि उसमे राष्ट्रपति की मंजूरी के बाद 2 मार्च 2014 तक प्रवर्त होने की मियाद बाकी है । इनसबके बीच काग्रेस ने केन्द्र के लोकपाल के तर्ज पर अपना बिल सदन मे पेश कर दिया । लेकिन सवाल है क्या जनता को भष्ट्राचार के खिलाफ जंग के लिए क्या मजूबत लोकायुक्त क्या मिल पाएगा।
 नये बिल के अनुसार लोकायुक्त पीठ में 1 अध्यक्ष और 4 सदस्य मिलाकर 5 की लोकायुक्त पीठ होगी, लेकिन मुख्यमंत्री के खिलाफ जंाच के लिए कम से कम 4 की सहमति आवाश्यक है। अगर दो सदस्यों का पद रिक्त है तो सीएम के खिलाफ लोकायुक्त जांच नही कर पाएगा। अगर 2 सदस्य ने ऐतराज किया तो भी जंाच नही हो सकती। एैसे में सीएम को नया बिल सुरक्षा कवच प्रदान करता दिख रहा है क्यिाकि लोकायुक्त चयन समिति के अध्यक्ष भी खुद सीएम ही होंगे। लोकायुक्त को तलाशी, सील करने, समन, जारी करने व कुर्की कराने की शक्ति दी गई है परन्त किसी लोकसेवक पर जांच को प्रभावित करने और साक्ष्य मिटाने की आशंका होने पर उसके स्थानंतरण या निलंबन की शक्ति नही दी गई है। इसके लिए लोकायुक्त महज राज्य सरकार को सिफारिश ही कर पाएगा, सिफारिश मानने या नही मानने का अधिकार राज्य सरकार के ही पास है। अब एैसे में निष्पक्ष जांच हो पाएगी कहना मुश्किल है। हालाकिं कांग्रेस इसे अन्ना की मंशा के अनुरूप् ठहरा रही है।
नए कानून में और भी लू-पोल छोड़े गए हैं। यदि कोई मामला पहले से ही किसी अदालत या विधानसभा की समिति के पास लंबित है तो उसे भी लोकायुक्त नही जंाच पाएगा। 7 साल पुराने प्रकरण की भी नहीं होगी जांच। मतलब यह कि सात साल पहले जो कांग्रेस की सरकार थी उसका कोई भी प्रकरण लोकायुक्त नही देखेगा। कांग्रेसराज के 56 घोटालो के लिए आयोग बना था, भाजपा शासन के कथित घोटालों के लिए कांग्रेस ने भी समिति बनाई, ये प्रकरण भी लोंकायुक्त नही देख पाऐगें ... तो फिर लोकायुक्त क्या करेंगे ... क्या नए भ्रष्टाचार का इंतजार।
इससे भी बढ़कर बात ये है दोनों के कानून में राज्यस्तर पर होमवर्क कम ही हुआ। खंडूरी सरकार ने अन्ना-अरविन्द वाले जनलोकपाल के माडल ड्राफ्ट को लेकर उसमें कुछ जोड़ा-घटाया और अब नए ड्राफ्ट में भी जो कानून देश की संसद ने पास किया उसमें कुछ फेरबदल किया गया।
यंहा समझने वाली बात ये है कि दोनों का माॅडल केन्द्रीय है जबकि राज्य के विषय और अधिकार अलग होते है। खडूरी सरकार के जिस कानून को राज्यपाल की सहमति के बाद मई 2012 तक प्रवर्त हो जाना था केन्दीय विषयों के कारण वो राष्ट्रपति के पास चला गया। अब नए बिल में लोकायुक्त या सदस्य अपने कार्यकाल के बाद राष्ट्रपति के हस्ताक्षर से किसी संघ या राज्य मे प्रशासक नियुक्त नही हो सकेगा साथ ही अगले पांच साल न वो चुनाव लड़ पायेगा और न ही लाभ के पद पर बैठ पायेगा। ये प्रावधान संघीय व समवर्ती सूची मे होेने के कारण राज्यपाल अपनी मंजूरी के बाद बिल को केन्द्र या राष्ट्रपति के पास भेज सकते है। एैसे में बड़ा डर ये है कि 6 महीने की मियाद के बावजूद ये कानून भी कंही लम्बा सफर तय न कर दे।
(राजीव रावत,  देहरादून)



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