क्या अब महिला थामेगी देवभूमि की कमान? 

राहुल के फरमान से उत्तराखंड में सियासी गोलबन्दी शुरू

इन्दिरा, अमृता और शैलारानी में जोर आजमाईश


( राजीव रावत,देहरादून ) आम आदमी का हाथ कांग्रेस के साथ। इस नारे ने कांग्रेस का बीते 10 सालों तक भारत में राज कायम रखा... पर दस साल बाद अब कांग्रेस भी समझ चुकी है कि आम आदमी पर उसके कथित कापीराइॅट का वारिस आम आदमी पार्टी के रूप में सामने आ चुका है। झाडु उठाकर अब आम आदमी कांग्रेस के सफाए के अभियान में जुट गया, दिल्ली चुनाव में इसका अक्स दिख चुका है अब 2014 में बारी देश में है। सवा सौ साल पुरानी पार्टी कांग्रेस वक्त की नब्ज को समझ रही है इसलिए जुमला बदले न बदले पर टारगेट जरूर बदल गया। एआईसीसी की बैठक में इसके साफ संकेत कांगे्रस के युवराज ने दे दिये... कि युवराज के राज में कांग्रेस के भीतर युवाओं और महिलाओं का नया राज स्थापित होगा। सिलेडरों की संख्या फिर 12 होगी और कांग्रेस शासित राज्यों में 50 फीसदी मुख्यमंत्री अब महिलंायें होगी
राहुल के भाषण से युवा और महिला कांग्रेस में नई उर्जा का संचार हो गया है, लेकिन कांग्रेसी मुख्यमंत्रियो की रातों की नींद उड़ गई,, खास तौर पर उन राज्यों की जिनकी बागडोर बूढ़े कन्धो पर है। देश के दर्जनभर राज्यों में कांग्रेस का राज है। इस लिहाज से देश को 6 नयी महिला मुख्यमंत्री मिलना तय है। पूवोत्तर राज्यों को छोड़ दे तो सबसे अधिक विवादित राज्यों में उत्तराखंड,महाराष्ट्र और हिमाचंल है... जंहा मुख्यमंत्री पद की जंग पहले से ही चल रही है। और सबसे अधिक हंगामा उत्तराखंड में है , जंहा नेतृत्व बदलना पहले से ही तय माना जा रहा है।
राहुल के नए एलान का प्रयोग अगर उत्तराखंड में हुआ तो हरीश रावत विरोधी खेमे में इस बात की ठंडक रहेगी की महिला फार्मुले से उनका पत्ता भले ही कट गया हो पर हरीश को भी कुर्सी नही मिली। खैर... इन सबके बीच बंद कमरों में सियासी समीकरण बनने शुरू हो गए है। महिला कोटे से मुख्यमंत्री बनने की दौड़ अगर हुई तो कांग्रेस में पहला नाम संसदीय कार्यमंत्री इन्दिरा हृदयेश का आता है। 1974 से लगातार वो यूपी विधानपरिषद की सदस्य रही और राज्य बनने के बाद दो बार विधायक चुनी गई हालांकि एक विधानसभा चुनाव में उन्हे हार का भी सामना करना पड़ा। मुख्यमंत्री पद के लिए वो दावा भी पहले ही कर चुकी हैं, संसदीयकार्य, वित्त, लोक निर्माण विभाग, भाषा,प्रोटोकाल समेत एक दर्जन से अधिक मंत्रालयों को वह तिवारी और बहूुगुणा के कार्यकाल में थाम चुकी है। अनुभव,प्रशानिक क्षमता और वरिष्ठता उनका मजबूत पक्ष है, तो कुछ पुराने विवाद और नैनीताल,उद्यमसिंहनगर को छोड़ बाकी राज्य में जनाधार न होना एक कमजोरी भी है। इसके अलावा पूर्व सीएम एनडी तिवारी और निर्दलीय मंत्री हरीश दुर्गापाल का साथ उनके दावे को मजबूत करता है
महिला कोटे से मुख्यमंत्री पद की दूसरी मजबूत दावेदार है पर्यटन मंत्री अमृता रावत। तीन बार लगातार चुनाव जीतना उनकी निजी लोकप्रियता का पैमाना है, उत्तराख्ंाड में पर्यटन के साथ ही उर्जा,सिंचाई,महिला विकास, संस्कृति, उद्याानिकी, वैकल्पिक उर्जा जैसे विभागों को तिवारी और बहुगुणा कार्यकाल में चलाने का अनुभव प्राप्त है। इसके अलावा पूर्व रेलराज्यमंत्री और पौड़ी गढ़वाल के सांसद सतपाल महाराज की पत्नी होना उनके दावे को मजबूत करता है। राजनीति के अलावा धार्मिक क्षेत्र में इस परिवार का बर्चस्व है, सतपाल महाराज कांग्रेस के राष्ट्रीय स्तर पर स्टार प्रचारक है जो हर चुनाव में कांग्रेस के लिए सदभावना रैली का आयोजन करते है। गढ़वाल लोकसभा में तो वह कोंग्रेस के निर्विवादित नेता है। अमृता रावत पौड़ी और नैनीताल जिले से विधानसभा चुनाव जीत चुकी है, ये दोनों मंडलों उनके दखल को दर्शाता है। इन मजबूत पक्षों के अलावा अमृता रावत का मायका उत्तरप्रदेश में होना उनकी उत्तराखंड के लिहाज से कमजोरी और राष्ट्रीय पैमाने पर मजबूती दोनों को ही दर्शाता है, निर्दलीय मंत्री प्रसाद नैथानी सतपाल महाराज के खुले समर्थक हैं जो पीडीएक मे उनकी स्वीकार्यता को दर्शाता है।
इन महिला मंत्रीयों की जंग के बीच कांग्रेस के पास एक तीसरा नाम भी है केदारनाथ की विधायक शैलारानी रावत। शैलारानी रावत उन चुनिंदा विधायकों में से है जो जनता के लिए अपनी ही सरकार से भी भिड़ जाती है, नौकरशाहों की सुस्ती पर भी लताड़ लगाने में भी वो हमेशा आगे रही।
इससे पहले शैलारानी रावत रूद्रप्रयाग की जिला पंचायत अध्यक्ष भी रही चुकी है। पंाच साल तक जिला सरकार चलाने के अलावा केदारनाथ सीट पर पहली बार कांगेस का खाता भी शैलारानी की जीत से ही खुला। सियासी तौर पर किसी बडे़ गुट से जुड़े न होना उनके कद का कमतर करता है पर ससुराल पौडी से शैलारानी खुद चुनाव जीती है और मायके टिहरी से उनके भाई कांग्रेस के विधायक हैं। टिहरी लोकसभा की बेटी और पौड़ी लोकसभा की बहु होने से शैलारानी दो लोकसभा सीटों को सीएम की कुर्सी मिलने का अहसास दे सकती है। इसी क्षेत्र से निर्दलीय दिनेश धनै, मंत्री नैथानी और प्रीतम पंवार का सरकार को समर्थन है। सीएम पद के एक दावेदार हरक सिंह रावत एैसी सूरत में शैलारानी का साथ दे सकतें है। और किसी गुट का न होना अमृता और इन्दिरा की जंग में इन्हें बाकी गुटों का समर्थन दिलवा सकता है।
  बहरहाल ये समीकरण तभी फिट बैठ पाएंगे जब राहुल का महिला फार्मूला उत्तराखंड में चलेगा। और सतपाल महाराज और एनडी तिवारी गुट की दो मजबूत दावेदारों के बीच हरीश रावत और विजय बहुगुणा किस पाले के साथ होगें।

 
 

 

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