हूकमत जाएगी तो गैरसैंण समझाएगा अपने मायने(राजीव रावत)


हूकमत जाएगी तो गैरसैंण समझाएगा अपने मायने

14jan2013/उत्तराखंड के मानचित्र में चमोली जनपद की एक तहसील के रूप में चित्रित गैरसैंण अब भविष्य में राज्य की.....ग्रीष्म या स्थाई राजधानी के रूप में भी अंकित हो सकता हैं। हुकूमत ने गैरसैंण में शिला का पत्थर रखा तो भविष्य की ओर निगाह बरबस चली जा रही हैं। आंदोलनकारी संगठन विपक्षी दल भाजपा और सत्ता में भागीदार यूकेडी शिला के साथ ही इस बात की भी घोषणा चाहते थे....कि 12 सालों तक जो गैरसैंण राज्य के राजनैतिक एंजेडें से गैर रहा उसे ग्रीष्म या स्थाई राजधानी का दर्जा भी दे दिया जाए....आधार की शिला रखते ही आशंकाओं के पहाड खडे किए जा रहे हैं.....कि महज हफ़्ते भर के एक सत्र से क्या होगा....।
    राज्य का निर्माण करने वाली पार्टी बीजेपी के नेता गैरसैंण को समर कैपिटल बनाने की मांग कर रहे हैं...। राज्य निर्माण के लिए आंदोलन करने वाला दल यूकेडी स्थाई राजधानी चाहता हैं....लेकिन सवाल हैं कि एक हफ़्ते के सत्र........ चंद महीनों के ग्रीष्मकाल या स्थाई राजधानी से क्या कुछ हो सकता हैं। अगर समझने वाले लखनऊ से देहरादून आकर 12 साल में नहीं समझ सके तो क्या गांरटी हैं कि स्थाई रूप से गैरसैंण जाकर समझ पाएंगे....राजनीति का अपना मिजाज हैं....लिहाजा विरोध और समर्थन दोनों ही होगा.....लेकिन हमारी नजरों में गैरसैंण महज उस स्थान का नाम नहीं हैं जहां विधानभवन का निर्माण हो रहा हैं। वरन गैरसैंण भविष्य के विधानभवन की सरहद के बाहर.....अविभाजित उत्तरप्रदेश के उस टुकडे की तासीर का प्रतीक हैं.....जिसकी तस्वीर लखनऊ से मेल नहीं खाती थी....हुकूमत चाहे एक हफ़्ते के लिए ही गैरसैंण जाएंगी तो विधानभवन और अपने सरकारी आवासों के बाहर जब जब कदम बढाएगी...गैरसैंण की जमीन उन्हें खुद समझाएगी कि उत्तरप्रदेश से अलग उत्तराखंड राज्य की मांग आखिर क्यों उठी थी
   गैरसैंण का मायना हैं ऊंचे पहाडों पर सूखते हलक.......जहां महिलाओं की जिंदगी का आधे से ज्यादा वक्त सिर्फ सरों पर पानी के बंठों को ढोने में बीत जाता हैं....गैरसैंण का मायना उन्ही महिलाओं के लिए जिंदगी से तंग आकर ऊंची खाईयों से छलांग लगाकर नीचे बेकार बहते पानी में कूदकर अपनी जान गंवा देना हैं। गैरसैंण का मायना कोद-झंगोरा-बुंरांश और गाथ भी हैं। वो कोदा-झगोरा हैं जिसे खाकर पर्यावरणविद् सुंदरलाल बहुगुणा 70 दिनों की ऐतिहाहसिक भूख हडताल करते हैं न उनके माथे पर शिकन का एक भी बल पडता हैं और न उनके कंधे पैदल मार्ग में बोझा ढोने पर 85 साल की उम्र में भी कही से झुकते हैं। वो कोदा झंगोरा जिसके बाई-प्रोडक्टस को दिल्ली हाट में विदेशी लोग हजार रूपये प्रति किलों की कीमत तक खरीदते हैं। गैरसैण का मायना गाथ की वो दाल हैं जिसे गठरी में बांधकर उत्तराखंड के छुटभैया नेता दिल्ली जाते हैं....आलाकमान और मंत्रियों को ये कहकर भेंट करते हैं कि ये पहाड की वो संजीवनी हैं जिसे खाकर आपकी पथरी बगैर किसी दवा या आपरेशन के ठीक हो जाएगी। गैरसैण के मायने वो जख्मी शरीर भी हैं जो ऊंची अट्टालिकाओं से गिरकर अगर बच गए तो बाकी जिंदगी किसी जिंदा लाश की तरह समय बिताते हैं....क्योंकि तंग सडकें भगवान बद्रीविशाल और स्वर्ग की सीढी दर्शन करने से पहले और करने के बाद दोनों बार यमराज की तरह राहगीरों का इंतजार करती हैं....हुकूमत सडकों पर जाएगी....तो खुद की मौत का भय उसे भी सालेगा....लिहाजा गैरसैंण का मायना विधानभवन के बाहर उसे बरबस समझ में आएगा।
     गैरसैंण का मतलब वो पहाड भी हैं...जहां से इंसान तो क्या...पेड पौधे भी पलायन कर रहे है...और पलायन के आंकड़ो के बीच गुमशुदा महिलाओं की वो तादाद भी हैं....जिनका सालों से कोई पता नहीं। गैरसैण का मतलब दरकती हुई....वो पहाडियां भी हैं...जो हर साल पहाडवााियों पर कयामत बनकर टूटती हैं...लेकिन बहते पानी के साथ जब नदियों के किनारे ठहरती हैं तो कंक्रीट की इमारत बनाने के लिए वरदान के रूप में बालू और पत्थर भी देती हैं वो बालू और पत्थर जिसका चुगान अगले साल फिर से इसी वरदान को पाने के लिए जरूरी होता हैं लेकिन देहरादून और दिल्ली मे बैठने वाले हुक्मरान उसे नासमझी में खनन का नाम देकर उस पर रोक लगा देते है। मायने बहुत कुछ हैं....हुक्मरान हफ्तेभर के लिए भी जाएंगे तो विधानभवन और उनके लिए बनने वाले सरकारी आवास के बाहर गैरसैण्ंा की आबोहवा खुद उन्हे समझाएगी कि आखिर लखनऊ और देहरादून की तासीर से क्यों मेल नहीं पहाड़ी राज्य उत्तराखंड की तकदीर।  (राजीव रावत,N10) 

Comments

Popular posts from this blog

भारत या india........?