M factor.टिहरी की जंग में कृष्ण कौन ? मुन्ना या मातवर!

मतदाता का मन [5]- टिहरी की जंग में M फैक्टर- मुन्ना या मातवर!

राजीव रावत

देहरादून। दलबदल के दलदल में धंसता जा रहा है टिहरी लोकसभा उपचुनाव। कांग्रेस और भाजपा के नेताओं के चहरों में बड़े पैमान पर अदलाबदली हो गयी...लेकिन सबसे सवाल यह है कि क्या नेताओं की अदला-बदली मे ंवोटों की भी अदला-बदली हो पाई है। देश की तरह ही दलबदल के इस दलदल भी अब नजर अब ‘‘एम‘‘ फैक्टर पर टिक गई है। कांग्रेस का (एम) फैक्टर है मातबर कंडारी जिनका साथ मिलने से कांग्रेस को अपनी जीत तो भाजपा की हार दिखाई देती है तो वहीं भाजपा का (एम) फैक्टर है मुन्ना सिंह चैहान।
   कांग्रेस के कुनबे में दलबदल और घर वापसी के जरिये नेताओं की नयी खेप हाथ के साथ आयी है उनमें सबसे पहला नाम भाजपा के दिग्गज नेता मातवर सिंह कण्डारी और पूर्व विधायक राजकुमार का है। कण्डारी की अपनी विधानसभा रूद्रप्रयाग पौड़ी लोकसभा का हिस्सा है। अविभाजित उत्तरप्रदेश में वे देवप्रयाग के विधायक हुआ करते थे जिसमें वर्तमान नरेन्द्रनगर,देवप्रयाग और रूद्रप्रयाग विधानसभा के अलावा आंशिक रूप से घनशाली विधानसभा के कुछ गांव आते हैं। तीनों विधानसभायें अब पौड़ी लोकसभा का हिस्सा है लिहाजा वोट के लिहाज से कांग्रेस को कितना लाभ होगा ये तो चुनाव बाद ही पता चलेगा। हालाकि  सहसपुर में उनके पुत्र राजीव कंण्डारी विधानसभा की तैयारी कर रहे थे, जिसका लाभ जरूर मिलगा।  टिहरी व उत्तरकाशी की शेष सीटों में मंत्री रहते हुए जिन भाजपा कार्यकर्ता व आमलोगों से कण्डारी के निजी संबध हैं वह जरूर कांग्रेस के पक्ष में आ सकते हैं।
पिछली दफा भाजपा के टिकट पर लोकसभा चुनाव लड़ चुके जसपाल राणा पहले ही कांग्रेस में शामिल हो चुके थे लेकिन इस भरोसे के साथ कि बहुगुणा के सीएम बनने पर लोकसभा टिकट उन्हे मिलेगा, सक्रियता के अभाव में जसपाल का व्यक्तिगत जनाधार ना के बराबर है लेकिन जौनपुर में रिश्तेदरी और युवा प्रेम का लाभ कांग्रेस को मिल सकता था लेकिन जसपाल का अंदाज कोपभवन मे बैठने जैसा हैं उपर से उनके पिता नारायण सिंह राणा ने भाजपा को दामन नहीं छोड़ा है लिहाजा जसपाल फैक्टर के जौनपुरियों की नाराजगी का लाभ कांग्रेस को लाभ देगी या हानि ये तो अंतिम क्षणों में ही साफ हो पाएगा।
      कांग्रेस में शामिल हुए दूसरे बड़े नेता पूर्व विधायक राजकुमार हैं। सहसपुर से विधायक रहे राजकुमार ने बतौर निर्दलीय प्रत्याशी पुरोला सीट से भाजपा को सीधी टक्कर दी थी इन दोनों सीटों पर कांग्रेस को कुछ हजार वोटों का लाभ हो सकता है। धनोल्टी विधानसभा में बतौर कांग्रेस के बागी प्रत्याशी जोत सिह बिष्ट ने त्रिकोणीय मुकाबले में 10 हजार वोट हासिल किये थे। बिष्ट की घर वापसी से कांग्रेस का बिखरा मत वापस मिल सकता है। टिहरी में कांग्रेस के बागी दिनेश धनै ने कांग्रेस को ही बतौर निर्दलीय चुनाव हराया था इस चुनाव में उन्होने साकेत को समर्थन दे दिया है, जिससे टिहरी में भी कांग्रेस को इस समीकरण से लाभ मिलेगा। वहीं मसूरी में कांग्रेस की हार का कारण बागी बना थापली परिवार था उपेन्द्र थापली सहित उनकी पत्नी की भी कांग्रेस में वापसी हो गयी है। जिसका लाभ कुछ हजार मतों की बढ़त से मिलेगा।
    दलबदल के इस दौर में भाजपा में मुन्ना सिंह चैहान की घर वापसी हुई है। चकरौता-जौनसार क्षेत्र में मुन्ना सिंह या कांग्रेसी प्रीतम सिंह का ही राज चलता है। लिहाजा लगभग नैपत्थ्य में रही भाजपा को यहां भारी बढत मिल चुकी है। मुन्ना चैहान इससे पहले जनवादी पार्टी के बैनर तले टिहरी की हर सीट पर अपने समर्थकों को चुनाव लड़वा चुके हैं। उत्तरकाशी की गंगोत्री,पुरोला व यमनोत्री विधानसभा सीटों पर उनकी पार्टी को लगभग 18 हजार वोट प्राप्त हुए थे। ऐसे ही टिहरी की प्रतापनगर,घनशाली, टिहरी व धनोल्टी विधानसभाओं में करीब 14 हजार वोट जनवादी पार्टी को मिले थे। देहरादून जनपद की मसूरी,राजपुर,रायपुर,सहसपुर,विकासनगर,चकरौता में वोटों का ग्राफ 40 हजार के आसपास था। खुद मुन्ना सिंह तीन बार टिहरी लोकसभा को चुनाव अपने दम पर लड़ चुके है ंजिसमें वोटों का ग्राफ 70 हजार से 80 हजार के बीच रहा था। माना यह जाता है कि जितने वोट मुन्ना को मिलते हैं उनके पास उतने कार्यकर्ता भी हैं। इससे भाजपा की फौज में न सिर्फ वोट वरन कार्यकर्ताओं की भी बड़े पैमाने पर बढ़ोत्तरी हुई है।
  वहीं मुन्ना की धर्मपत्नी मधु चैहान जो जिलापंचायत अध्यक्ष देहरादून हैं के भाजपा में आने से उनके साथ दर्जनभर जिला पंचायत सदस्यों ने भी भाजपा की सदस्यता ली है। साथ ही बड़ी संख्या में देहरादून जनपद के क्षेत्रपंचायत सदस्य व ग्राम प्रधान भी भाजपा में शामिल हुए जो अलग से भाजपा के वोटों में इजाफा दे सकते हैं। लालघाटी, रवांई घाटी और दूनघाटी के वामपंथी सोच के पुराने दिग्गज अक्सर चुनाव में कांग्रेस का समर्थन आखिरी दौर में करते रहे हैं लेकिन इनका समर्थन मुन्ना चैहान के लड़ने पर मुन्ना को ही मिलता था। राष्ट्रीय फलक पर मनमोहन के खिलाफ इनकी नाराजगी का लाभ इस बार भाजपा को मिल सकता है जिसमें देहरादून के जिलापंचायत उपाध्यक्ष समेत लालघाटी का नौटियाल व चैहान परिवार शामिल है।
    कुल मिलाकर दलबदल के दलदल में जो कांग्रेसी दलदल है उसमें नेताओं की बड़ी जमात आ धंसी है लेकिन भाजपायी दलदल में भले ही नेता कम धंसे हों पर कार्यकर्ताओं और मतदाताओं की संख्या ज्यादा ही दिखायी देती है। महाभारत में भी करीब-करीब ऐसी ही स्थिति थी कौरवों को जहां संहस्त्र सेना मिली थी तो वहीं पांडवों के हिस्से मात्र कृष्ण ही थे, तो 13 अक्टूवर को ही साफ हो पाएगा कि टिहरी के कुरूक्षेत्र में कृष्ण कौन है! मुन्ना या मातबर।

   

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