टिहरीःक्या मनमोहन की विदाई को वोट?

टिहरीःमतदाता का मन-[3]

आरम्भिक राजनैतिक विश्लशण यह निकलकर आया कि टिहरी उपचुनाव में वोट का पैमाना राष्ट्रीय नही वरन राज्य का होगा। इस तर्क के पीछे का सच ये है कि आपदा की मार, पदोन्नति में आरक्षण,स्थानानतरण नीति, पिछली सरकार का भ्रष्टाचार और सड़क बिजली पानी की समस्या से जूझ रही टिहरी की जनता इसी गुण-दोष के आधार पर अपना वोट दे देगी। लेकिन जैसे ही ममता बनर्जी ने अपनी ममता के छांव से कांग्रेस को महरूम करने का मन बनाया टिहरी का सियासी गणित बदल गया । क्योकि ममता के बगैर एक-एक सीट का महत्व बढ़ गया है। और एैसे मे ंममता फैक्टर क्या टिहरी में कोई गुल खिला सकता है।
   
कुल 545 सदस्यों की मौजूदा लोकसभा में काँग्रेस के 205 सांसद हैं. अगर तृणमूल काँग्रेस के 19 सदस्य हाथ खींच लेते हैं तो यूपीए के पास द्रविड़ मुनेत्र कणगम के 18, राष्ट्रीय लोकदल के पाँच, राष्ट्रवादी काँग्रेस पार्टी के नौ, नेशनल कानफ्रेंस से तीन और दूसरी पार्टियों के कुछ सांसद रह जाएँगे.
सरकार को बाहर से समर्थन देने वालों में समाजवादी पार्टी, बहुजन समाज पार्टी, राष्ट्रीय जनता दल हैं और जनता दल सेक्युलर है. कुल मिलाकर बाहर से 50 सांसदों का समर्थन उसे प्राप्त है. यानि उसके पास 300 से ज्यादा सांसदों की ताकत है जबकि सरकार में रहने के लिए 272 सांसदों का समर्थन जरूरी है.
इस बार समाजवादी पार्टी के पास 22 और बहुजन समाज पार्टी के 21 सांसद हैं. समाजवादी पार्टी के नेता मुलायम सिंह यादव ने यूपीए के पहले दौर में भी वामपंथियों के समर्थन वापिस लेने के बादल मनमोहन सिंह सरकार को टिके रहने में मदद की थी. बहुजन समाज पार्टी के नेता कह चुके हैं कि सरकार के गिरने से उन्हें कोई राजनीतिक फायदा नहीं होने वाला.। इस परिदृश्य में दिक्कत ये है कि अगर समाजवादी पार्टी सरकार में शामिल होती है तो फिर उसकी पक्की दुश्मन मायावती की बहुजन समाज पार्टी किसी भी कीमत में शामिल नहीं होगी.
    इस परिदृश्य के बीच टिहरी में उपचुनाव हो रहा है। हो सकता है आगे ममता मान भी जाएं... लेकिन देश में जो कोयला घोटाला, महंगाई, एफडीआई की आग लगी है उसमें मनमोहन सरकार को जिदां रखने के दाग के साथ न तो ममता बनर्जी और न ही मुलायम सिंह, मायावती के साथ बाकि दल लोगों से वोट मांगना चाहेंगे। सत्ता की चाशनी अभी जितना रस है उसे अगर आगे पीना तो जनता का वोट भी जरूरी है... ऐसे मे इस बात से इनकार नही किया जा सकता है कि मनमोहन सरकार का कांउनडाउन शुरू हो चुका है।
    केन्द्र सरकार का करीब डेढ़ साल का कार्यकाल बाकी है। अगर मनमोहन सरकार गिरती है तो फिर विकल्प क्या है। एक यह कि भाजपा बाकि दलों के साथ मिलकर सरकार बनाए ... या फिर ममता-मुलायम की अगुवाई में तीसरे मोर्चे की सरकार बने। मुलायम को इसके लिये भाजपा का साथ चाहिए होगा और अपने धर्म निरपेक्ष एजेन्डे के कारण वो शायद ही एैसा करें। एैसे में मायावती को भाजपा या कांग्रेस दोंनो से कोई गुरेज नही है। लेकिन वामदलों और ममता का एक मंच पर साथ आना संभव नही। हो यह भी सकता है कि बहुमत के अभाव मे ंकुछ दिन हंग एस्मंबली वाली नौबत दिखाई दे।
    बहरहाल देश का एजेन्डा फिलहाल ये है कि ममता बनर्जी और मनमोहन मे से किसकी राह चला जाए। मनमोहन सरकार के काउनडाउन के साथ ही टिहरी लोकसभा का भी महत्व बढ़ गया है। भाजपा ने एैसी सूरत मे ंसरकार बनाने से इनकार कर दिया है। तो टिहरी के मतदाताओं को भी यह तय करना है कि वो अपना सांसद किसलिए जितवाएं मनमोहन सिंह की सरकार को मजबूती देने के लिए या फिर प्रधानमंत्री पद से मनमोहन कों हटाने के लिए। हालाकि तीसरा कोण फिलहाल मुख्य मुकाबले से बाहर दिखता है लेकिन एक संभावना ये भी है कि अगर मनमोहन सरकार गिरती है  और तीसरे मोर्चे की सरकार देश मे बनती है तांे टिहरी का गैर भाजपा-गैर कांग्रेसी सांसद न सिर्फ उसे समर्थन दे सकता है वरन सरकार में हिस्सेदारी भी मांग सकता है। इन सबके बीच आपसे सवाल है कि आप क्यों वोट देंगें मनमोहन को बचाने के लिए या देश का पीछा मनमोहन सरकार से छुडाने के लिए।
rajiv.rawat6@gmail.com

राजीव रावत[VON]


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