भारत या india........?

भारत या इंडिया......       

जीवन  के साढ़े  तीन दशक पूरे करने के दौरान मैं एक  प्रशन  का जवाब, दो दशक से तलाशने के बावजूद न पा सका. जब दुनिया के लगभग सभी  देशों का नाम हर भाषा और लिपि में एक  ही  होता है तो  फिर ऐसा हमारे देश के साथ क्यों नहीं.....? हम हिंदी में "भारतीय" होते हैं और इंग्लिश में "इंडियन"....! ऐसा क्यों?
                दुनियाबी  लोगो से मालूमात किया , तो घूम-फिरकर एक ही जवाब मिला , कि सिन्धु  घाटी के इस पार होने के कारण फिरंगी  हमे हिन्दू कहते हुए ''एच'' को जुबान में चबाकर इंदु पुकारा  करते थे .  और हिन्दुस्तानी के बजाय ''इंडियन'' कहा करते थे. मतलब हम बोलचाल  में  विदेशियों  के लिए इंडियन हो गए.! .... चलिए, उनकी नज़र से तो ये  बात समझ  में आती है पर हमे क्या हुआ ?
       माना  कि  विदेशी  बोली का पिछलग्गू बनकर हमारे लोग  भी इंडियन शब्द को, पुकारकर खुद को अंग्रेज़ समजने लगे , पर अधिकारिक तौर पर भी हमारा  देश  हिंदी में ''भारत'' और अंग्रेजी में ''इंडिया'' क्यों हो गया? 
       यह भी मान लिया जाये कि तब आजादी महत्वपूर्ण थी इसलिए जैसा मिल  सका उसे ही अंगीकार कर लिया ... पर आजादी की हवा में सांस लेते  हुये  हमे ६ दशक बीत गए हैं, फिर भी हम ''इंडिया ''  को ढोने पर क्यो मजबूर हैं.---?
          जब सरकारी मोहर लगती है , तो "govt of india " या "भारत सरकार" का इस्तेमाल होता है .........  नाम हमारा ऐसा वजूद है जो मिटाए नहीं मिटता . नाम के उपनाम होते हैं , लेकिन नाम तो एक ही रहता है.  और जहाँ तक मेरी समझ कहती है कि ,नाम का तो अनुवाद भी नहीं होता.  फिर भी हम "भारत" और "इंडिया" जैसे दो नामो के साथ ६ दशको से क्यो जी रहे हैं .!
 जब सविधान राज्य और नगर के नांम  बदलने की इजाज़त देता है. तो भारत को  दुनिया के मानचित्र पर खुद के वजूद के साथ रहने से आखिर कौन रोक रहा  है.?......पर कष्ट इस बात का है क़ि , सर्वोच्च सदन में इस बात क़ि  पैरोकारी करने वाला प्रतिनिधि शायद. १०० करोड़ क़ि भीड़ में अभी  तक पैदा ही नहीं हुआ है.! 
        शायद आप इसे मेरी छोटी मानसिकता मान सकते  हैं.! पर ब्रहमांड   की रचना करने वाले ने जब  अपनी हर कृति  को उसका 'एक"  अपना अस्तित्व दिया तो हमारे  देश के दो अस्तित्व कैसे हो सकते हैं. पर जिन काबिल कंधो को  हमने अपना  नायक चुना , उनके लहू में जब वो जज्बा ही  नहीं तो हम पिछलग्गू से सिरमौर कैसे बन सकते हैं!  ६ दशक  के बाद ये कोई नया " राग" नहीं है , वरन वो "आग " है ,जिससे हर भारतीय झुलस रहा. है. !  सविधान में  अधिसंख्य संशोधन हुए , पर इस बुनियादी गलती का सुधार अभी बाकी है. !
       हमारा मस्तक एक हो... वजूद  एक हो.... नाम भी एक  हो......  
                               प्रणाम " भारत"! .......... (राजीव रावत/ 24 -जनवरी 2011 )

Comments

  1. बिलकुल सही कहा वाकई में कोई ऐसा माई का लाल पैदा नहीं हो रहा है जो इस मुद्दे को उठाए और इसे देश की अस्मिता से जोड़ कर देखे और खुद से ही नहीं बल्कि तमाम देशवासियों से ये सवाल करे की आखिर हिंदी का भारत इंग्लिश में इंडिया कैसे बन जाता है ,
    अच्छा सवाल उठाया है , १ न १ दिन जरूर सूरज पूरब से उगेगा और पश्चिम की चकाचोंध में डूबे नीति नियंताओं की आँखे खुलेंगी ये मेरा विश्वास है ।
    बहरहाल इस गहरी सोच और संवेदनशील सवाल को उठाने के लिए आप धन्यवाद के पात्र है

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  2. aapka sochna bilkul theek hai lekin agar dekha jaye toh pure viswa main bharat ya india he ek aisa desh hai jaha kadam kadam par boliya,sanskiriti badalti hai ,alag alag dharam ke log sath rahte hai,jagah cahe koi bhe ho hindu,muslim,sikh isai,parsi,sindhi yaha tak ke ek st sc wala bhe waha sath rahta hai,,,,yahe toh hindustan hai yahe toh bharat hai or india bhe yahe hai.....or baat jaha tak bharat or india ke hai toh ye jarur hai ke in do shabdo ko alag kiya gaya hai lekin aaj bhe har hindustani bhartiya hai or har bhartiya indian hai.....ye hamara saubhagya hai ke ham kisi ek naam ke bandhan main nahe bandhe hai...hume koi indian kahe ,koi bhartiya kahe ya phir hindu....hamari soch,feelings,wishes sab ek desh ke liye hai wo hai hamara desh.....jise koi kuch bhe kahe.......jai hind jai bharat,jai indian

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